जो दिख रहा है सामने वो दृश्य मात्र है लिखी रखी है पटकथा मनुष्य पात्र है.....
जो दिख रहा है सामने वो दृश्य मात्र है
लिखी रखी है पटकथा मनुष्य पात्र है
नये नियम समय के है , असत्य, सत्य है
भरा पड़ा है छल से जो वही सुपात्र है
विचारशील मुग्ध है कथित प्रसिद्धि पर
विचित्र है समय विवेक शून्य मात्र है
है साम दाम दंड भेद का नया चलन
कि जो यहाँ सुपात्र है वही कुपात्र है
घिरा हुआ है पार्थ पुत्र चक्रव्यूह में
असत्य सात और सत्य एक मात्र है
कही कबीर सुर की कही नज़ीर की
परम्परा से धन्य ये गज़ल का छात्र है।
टिप्पणियाँ