प्रेम और मेरी हालत : सावन

 


जब तन्हा बैठता हूं तो डर के साए में चला जाता हूं, आंखो में आंसू, कलेजे का भर आना सब नॉर्मल है मेरे लिए, क्योंकि जिन्दगी में एक ही शख्स को तो चाहा है मैने, और उसे खोने का डर ताउम्र रहेगा जब तक वो मेरी ना हो जाए। मैं हर रोज अपने तकिए के गिलाफ को भिगोता हूं, अपने आप से लड़ता हू, अपने डर से लड़ता हूं ये एहसास कराता हू दुनिया को की मैं ठीक हूं और मैं कितना ठीक हू ये मैं जानता हूं शायद कोई नहीं, पर यहां रोना कोई देखता है, जिसे मैं दिखाना चाहता हूं ताकि वो समझे तो मेरा दर्द, समझे मेरे प्यार को जब जरूरत पड़े तो ये लिखित गवाही रखे तो अपने मां बाप के सामने की वो बंदा बंद कमरे में सिसक रहा है सिर्फ मेरे लिए, अपने कैरियर बनाने के उम्र में वो डर के साए में जी रहा है, वो चाहता नही खोना पर उनके मां बाप के ज़िद, में वो अपना दिन, जिंदगी सब बर्बाद कर रहा है।

मेरे फोन को गैलरी भर रही है कुछ दिनों से आंसुओ से भरी आंख का फोटो ले ले के पर किसे फर्क पड़ता है समाज को खुश रखना है सबको बच्चों को किसको पड़ी है, बच्चो की खुशी के लिए उम्र भर संघर्ष करना और आखरी में समाज के डर से बच्चों को बांध देना उनके मर्जी के खिलाफ।

जिस समाज ने ये डर पैदा किया है करे सवाल मुझसे कौन है दूध का धुला और कौन है मुझसे ज्यादा सच्चा जो अपने प्यार के पैर पे गिर के प्यार का भीख मांग रहा है, उनके परिवार के आगे झोली फैला रहा है, अपनी पंगड़ी रख रहा है ,या वो समाज जिनके काली करतूतें उनको पता है या ईश्वर को 


खैर तुम्हारे इंतज़ार में अनंत तक का सफ़र लिए हुए 


तुम्हारा सावन

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