मैं, लपकझुन्ना और हमारा प्रेम 4 : सावन

 हर रोज़ रास्ते से गुजरते हुए एक शख्स से मिलता हू, लपकझुन्ना के पिता जी को देखता हूं जो मेरा नजात (मुक्ति दिलाने वाला) है। बस देख के ही खुश हो जाता हू, या फिर एक उम्मीद जग जाती है शायद किसी रोज एहसास हो उनको की एक बसता हुआ घर, एक बसती हुई दुनिया को क्यों उजाड़ रहा हूं, फिर वो शायद इस भूल को सुधार ले। हमारा प्यार भी उनके तरह पवित्र है, उन्होंने ने भी जन्म जन्मांतर तक साथ रहने की कसम खाई है, हमने भी वादा किया है, कसम खाना है, फेरे लेने है पर हम आज भी अपनी खुशियों से ज्यादा उनके आशीर्वाद को तवज्जो दे रहे है। क्योंकि मैं अपनी खुशियों से ऊपर लपकझुन्ना को रखता हूं और वो लड़की हमारी खुशियों से ऊपर अपने पापा को रखती है, और उसने भरोसा कर रखा है की मैं सब सम्हाल लूंगा।

हमारा प्यार, हमारा रिश्ता उस चिड़िया के घोंसले की तरह है जिसका मोल बस हम जानते है, अगर टूट जाता है तो हम चहकते है, फड़फड़ाते है, पर कोई समझता नहीं हमारी भाषा, हमारा दर्द उस चिड़िया की तरह जिसका दर्द बस वो समझ सकती हैं। तोड़ने वाले को बस वो एक बोझ, एक घोंसला लगता है।

खैर रोने, चिल्लाने से प्यार मिल जाता तो एक साल से ऐसे छटपटा नही रहा होता मैं, प्यार को पाने के लिए चाहिए भरोसा, खुद पे, प्यार पे, और भगवान पे वो मिलाए है तो मंजिल तक पहुंचाएंगे वही, वरना अगर जो सच्ची भक्ति की हो मैने तो मुझे मेरा प्यार दे या मुझे मुक्ति।


सावन


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